मुझे उस नवोदय विद्यालय ने जीवन दिया है, जिसकी स्थापना राजीव गांधी ने की थी। मेरे लिए सीबीएससी बोर्ड से पढ़ाई करना किसी ख़ूबसूरत सपने जैसा था। मेरे लिए दिन में दो बार दाल, सब्जी, चावल, रोटी वो भी ताजी खाना अमीर घर की थाली के हिस्से जैसा लगता था। एक बार नाश्ता, दो बार स्नैक्स किसी अमीर परिवार के मीनू जैसा लगता था। मैंने शादी-ब्याह के अलावा कभी पनीर नहीं खाया था।
मेरे लिए लाइब्रेरी किसी कहानी और फ़िल्म के हिस्से जैसी थी। हॉस्टल में रहकर पढ़ना किसी बहुत अमीर लड़के की पढ़ाई का हिस्सा लगता था। जिसका रहन-सहन प्रिंस जैसा होगा।
यह सब चीजें मेरे असल जीवन का हिस्सा बनीं।
मैं इन 7 सालों में 1 साल के प्रवास में कर्नाटक में रहा। मुझे जरूरत भर की कन्नड़ पढ़नी और समझनी आती है। थोड़ा बहुत बोलना और लिखना भी जानता हूँ। त्रिभाषा फॉर्मूले से भाषा विवाद के हल के कई सूत्र दिखते हैं। मैं कई मायनों में अभी से सेल्फ डिपेंडेंट हूँ। मेरे और मेरे जैसे करोड़ों बच्चों के सपनों को सच बनाने के लिए और मेरे हिस्से में 7 अनमोल साल देने के लिए बहुत शुक्रिया नवोदय!
शुक्रिया राजीव गाँधी!
SOURCE: NEWS PAPER